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Showing posts from June, 2009

नक्सल समस्या से निपटने के पॉँच मंत्र

राज्यपाल ने अपने बस्तर प्रवास के दौरान अफसरों की बैठक लेकर नक्सल समास्या से निपटने के लिए पांच मंत्र दिए है। जिससे बस्तरवासियों को खुशहाल बनाकर नक्सल समास्या को खत्म किया जा सके। इसके लिए उन्होंने बस्तर में लोक सुरक्षा, अन्न सुरक्षा सहित शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार पर ज्यादा बल देने का निर्देश दिया है। राज्यपाल ई.एस.एल.नरसिम्हन ने बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में आयोजित बैठक में उन्होंने कहा कि अंचल में आम जनता की सुरक्षा, सुरक्षा सहित शिक्षा,स्वास्थ्य और सतत् रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित कराये जाने,पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति की यह पांच जरूरतें पूरी हो जाय तो वह खुशहाल रहेगा। उन्होंने प्रदेश को आगे बढ़ाने में बस्तर में काम कर रहे सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे अत्यंत कठिन और विषम परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। राज्यपाल ने अधिकारियों से उनके विभाग के बारे में जानकारी ली जिसमें आदिम जाति कल्याण विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग,स्वास्थ्य विभाग,पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग,विद्युत वितरण कम्पनी,चिकि

समाज भी नक्सली पैदा करता है

समाज में मिलने वाली व्यवस्था भी नक्सली पैदा करता है .मै और विकाश शर्मा एक पुलिस के एक वरिष्ठ अफसर के साथ बैठकर विचार विमर्श कर रहे थे ,ने आपने वेतन में विस्गति होने पर आपना दुखडा रोते हुए कहा दिया ,मंत्रलय में उनके जैसे अफसर कोचक्कर कटते ७ साल हो गया ,कभी सोचा आपके राज्य में नक्सली कैसे आ गए , मेरे बिना उत्तर दिए ही वह आगे बोलने लग गए अनपढ़ को नियम सिखा का कर उसका दुःख और बड़ा रहे है, फ़िर क्यो ने नक्सली उन्हें शोषण का पाठ नही पड़ाऐगे मै चुप था ,

बस्तर के आबुझ्मद में अब घुसेगी पुलिस

देश और प्रदेश में रहस्मय रहे बस्तर के अबुझ्मद में अब सरकार विकाश के रास्ते प्रवेश करने वाली है ,नक्सल विरोधी आन्दोलन से जुड़े डॉ उदयभान चोहन ने कहा की सरकार के इस फैसले का स्वागत करते है ,लेकिन सरकार को आदिवासियों की सस्कृति का ख्याल रखना होगा,नही तो नक्सली आदिवासियों की एक बार फ़िर रहनुमा बन जायेगी ,नक्सली यहाँ पिछले २० वर्षो से आपना हेड क्वाटर बना रखे है,इसकी जानकारी खुफिया तंत्र ने सरकार को काफी लबे समय से दे राखी है ,

लोकतंत्र के दरवाजे पर खड़ा बौद्ध

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१९९० में मध्यप्रदेश के बस्तर संभाग में जब नक्सलवाद धीरे धीरे अपने पांव पसारते हुए पूरे छत्तीसगढ़ आंचल में छाने की मुहिम चला रहा था। ऐसे में हरियाणा का एक नौजवान यहां भानुप्रतापपुर एसडीओपी के रुप में पदस्थ हुआ। सीधे साधे भोले भाले अधनंगे आदिवासियों के बीच उसने एक अजीब सी शांति पाई। उसे लगा शांति का मसीहा बौद्ध इन्हीं के बीच मौजूद रहता है। ऐसे में माओ का हिंसक आंदोलन इनके बीच ज्यादा समय सांस नहीं ले पाएगा। भटके हुए लोग बहुत जल्द इस शांत समाज में लौट आएगें। कुछ समय बाद उन्हें परिवारिक कारणवश यहां से लौटना पड़ा। बस्तर की शांति और बौद्ध उन्हें याद आता रहा। १९९४ में ग्वालियर में कमांडेट रहते हुए उन्होंने अपनी पहली पदस्थापना को याद करते हुए गौतम बौद्ध की पेंटिग बनाई। छह साल बाद छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तिव में आते ही बटवारे मे यहां चले आए उनके साथ बौद्ध की पेंटिग भी साथ आ गई। लेकिन शांत माने जाने वाला छत्तीसगढ़ इन दस सालो में काफी बदल चुका था। शायद शांति के पुजारी बौद्ध को पूजने वाले अब यहां नहीं थे और बौद्ध के चहेरे से भी मुस्काराहट गायब थी। नक्सलवाद ने यहां की धरती पर नरसंहार कर लाल ङांडा लहरा