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Showing posts from July, 2009

मुख्यमंत्री ने ली पुलिसअफसरों की क्लास

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मुख्यमंत्री डा।रमन सिंह व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने शुक्रवार को पुलिस मुख्यालय में अफसरों की मैराथन बैठक ली। हाल के दिनों में नक्सल वारदातों में बढ़ोतरी को लेकर उन्होंने नाराजगी फटकार लगाई, वहीं अफसरों में व्याप्त गुटबाजी पर जमकर भड़के। मुख्यमंत्री डा.रमन ने दो टूक शब्दों में अफसरों को नक्सल आपरेशन के पुख्ता एक्शन प्लान बनाने के निर्देश दिए हैं। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री डा.रमन ने मुख्यालय में फेरबदल का भी इशारा किया है।विधानसभा के मानसून सत्र से फुरसत पाने के बाद आज सुबह करीब ११ बजे मुख्यमंत्री व गृहमंत्री छापामार अंदाज में पुलिस मुख्यालय पहुंचे। उनके अचानक पहुंचने पर मुख्यालय में हड़कंप मच गया। जब श्री सिंह वहां पहुंचे तब कुछ गिने-चुने अधिकारी ही वहां मौजूद थे। उनके आगमन की खबर पाते ही अफसरों ने बेल्ट कसी और वे पुलिस मुख्यालय की तरफ दौड़े। कुछ ही देर में ही पीएचक्यू का कांफ्रेंस हाल पुलिस अफसरों से पट गया। मुख्यमंत्री ने पुलिस अफसरों के पहुंचने के बाद ही बैठक शुरू की लेकिन इशारों ही इशारों में अफसरों की चुस्ती-फुर्ती के लिए अपनी नाराजगी भी प्रकट कर दी। लगभग ११ बजकर १० मिनट पर कांफ्रे

नक्सली शहीद सप्ताह में पुलिस सतर्क

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नक्सल प्रभावित बस्तर में माओवादी द्वारा मनाए जा रहे नक्सली शहीदी सप्ताह का पूरा असर देखा गया है। उद्योग घरानों का विरोध करने के साथ ही नक्सली अब रात्रि में चलने वाली यात्री बसों की तलाशी भी ले रहे हैं। नक्सलियों को शक है कि पुलिस किसी योजना के तहत उन तक पहुंच सकती है। यात्री बसों और निजी फोर व्हीलर वाहनों के लिए फरमान जारी करते हुए गाड़ी के भीतर की लाइट जलाए रखने का फरमान भी नक्सलियों ने जारी किया है। प्रदेश से लगे नक्सल प्रभावित उड़ीसा ,महाराष्ट्र के साथ साथ बस्तर संभाग में नक्सली शहीदी सप्ताह का असर छाया हुआ है। वर्दीधारी नक्सली किसी भी मोड़ और दूरस्थ इलाके में जंगल से निकल कर सामने आ जाते हैं। यात्री बस और आंध्रप्रदेश की ओर से आने वाले मालवाहक वाहनों को रोककर तलाशी ली जा रही है। यात्री बसों में सवार यात्रियों के जरिए वे अपना संदेश भी प्रचारित कर रहे हैं। पुलिस ने भी नक्सली पर्चे बरामद किया है। पर्चों में स्थानीय गोढ़ी और हल्बी भाषा का प्रयोग भी किया गया है। नक्सली अपनी शहीदी सप्ताह में पूरी तरह सर्तकता बरत रहे है। खुफिया तंत्र के मुताबिक प्रदेश में विधानसभा सत्र चलने और ३ अगस्त को न

सेना से नक्सलियों को बचाने मानवाधिकारों के ठेकेदार आगे आए

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केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने छत्तीसगढ़, ङाारखंड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र में काम कर रहे नक्सली संगठनों को निशाना बनाते हुए स्पष्ट शब्दों में सैन्य कार्रवाई करने का संकेत दिया है। सैन्य कार्रवाई की कल्पना से ही नक्सली समर्थक संगठनों में हड़कंप मचा हुआ है। डा.विनायक सेन को जेल से रिहा कराने के लिए बनी केंद्रीय समिति ने सैन्य कार्रवाई के खिलाफ आंदोलन छेडऩे की घोषणा करते हुए नक्सलियों से शांतिवार्ता करने की मांग रखी है।देश के ११ राज्यों में नक्सलियों के पांव पसारने और पांच राज्यों में समानांतर सरकार चलाने के प्रयास को विफल करने के लिए केंद्र ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। खासतौर से लालगढ़ की घटना के बाद सरकार ने नक्सलियों को आतंकवादियों की Ÿोणी में रखा है। अब तक केंद्र इसे राज्य की समस्या मानती आई थी, लेकिन अब छत्तीसगढ़, उड़ीसा, ङाारखंड, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में एकाधिकार रखने वाले नक्सलियों के खिलाफ कें्र ने सैन्य कार्रवाई की मानसिकता बना ली है। दूसरी ओर सरकार के इस कड़े कदम और कोबरा बटालियन की स्थापना को देखते हुए मानवाधिकार संगठनों ने आगे चलकर बड़े पैमाने पर नर

उच्चान्यांयालय ने डीजीपी को जारी की नोटिस

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हाईकोर्ट बिलासपुर ने नक्सल प्रभावित इलाके में सात साल सेवा देने के बाद फिर से नक्सल प्रभावित मानपुर भेज जाने के स्थांतरण आदेश के विरुद्ध एडिशनल एसपी एम आर आहिरे की याचिका पर गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय को नोटिस जारी किया है। मिली जानकारी के अनुसार १२ जुलाई को मानपुर इलाके में नक्सलियों ने राजनांदगांव एसपी विनोद कुमार चौबे पर घातक हमला कर दिया था। इस हमले में एसपी सहित २८ जवान शहीद हो गए थे। घटना के तत्काल बाद राजधानी के एडिशनल एसपी (यातायात)एम आर आहिरे को मानपुर एडिशनल एसपी के रुप में स्थातंरण कर दिया गया। श्री आहिरे हाल ही में नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में अपनी सेवा देकर लौटे थे। लगभग सात वर्षो तक वह बस्तर संभाग के विभिन्न जिलों में रहे थे। सूत्रों के मुताबिक श्री आहिरे ने हाईकोर्ट बिलासपुर में तबादला रुकवाने स्टे लगाया था। हाईकोर्ट ने गृह विभाग सहित डीजीपी विश्वरंजन को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट में स्थांतरण के विरुद्ध याचिका दायर करने वाले पहले पुलिस अधिकारी नहीं है। इससे पहले भी डीएसपी,इंस्पेक्टर,सब इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों ने तबादला के विरुद्ध स

छत्तीसगढ़ पुलिस की तबादला नीति पर उठी अंगुली

चुनाव के मद्देेनजर साल में दो बार राज्य पुलिस में हुए तबादलों पर भी ऊंगली उठनी शुरु हो गईं है। इन तबादलों में निरीक्षक, उपनिरीक्षक साहित सिपाही स्तर के कर्मचारियों को एक नक्सल प्रभावित जिले से दूसरे नक्सल प्रभावित जिले में भेज दिया गया था। जबकि मैदानी जिले में अर्से से पदस्थ अधिकारी,कर्मचारी सुरक्षित जिलों में ही भेजे गए थे। कृपापात्र कर्मचारी अधिकारी दस वर्ष की नौकरी के बावजूद अब तक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं भेजे गए हैं। जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात पुलिस जवान मायूस हैं। उनका मनोबल लगतार गिर रहा है। जो पुलिस की तबादला नीति को कटघरे में खड़ा करता है। गौरतलब है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आचार संहिता लगने से पहले थोक में इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, हवलदार, सिपाही आदि के तबादले किए गए थे। जानकारी के मुताबिक इन तबादलों में नक्सल प्रभावित इलाके के अधिकारी कर्मचारियों को गैर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं भेजा गया, बल्कि नेताओं द्वारा पसंद के पुलिस अधिकारियों को अपने क्षेत्रों में पदस्थ कराया गया। लोकसभा चुनाव के समय भी आचार संहिता लगने से पहले हुए तबादलों

लोहा खदान की सुरक्षा में जुटा था मुख्यालय

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मानपुर इलाके में स्थित पल्लामाड़ लोहा खदान एक निजी कंपनी को सौपे जाने के बाद से नक्सलियों ने इसे बंद करवाने का फरमान जारी किया था। वहीं उच्चस्तरीय आदेश के तहत पुलिस मुख्यालय लोहा खदान की सुरक्षा में जुटा हुआ था। चौकी खुलवाकर और कैंप लगाकर किसी भी तरह नक्सलियों से निपटने के लिए तैयार था। लेकिन राजनंदगांव के उच्चाधिकारी बल की कमी को देखते हुए यहां कैंप लगाने और चौकी खोलने के पक्ष में शुरु से नहीं थे। एसपी विनोद कुमार चौबे की शहादत के बाद विभाग में चल रहे अफसरशाही का मामला एक के बाद एक कर उजागर होता जा रहा है। पुलिस मुख्यालय में बैठे आला अफसरों को मालूम था कि पल्लामाड़ में लगाए गए लोहा खदान का नक्सली पोरा जोर विरोध कर रहे हैं। स्थानीय ग्रामीणों द्वारा खदान के प्रदुषण से वहां के खेतखलिहान को बरबाद किए जाने आरोप भी लगाया जाता रहा। इस विरोध को दबाने के लिए वहां पुलिस की चौकी और कैंप लगाए जाने का मुख्यालय ने आदेश जारी किया था। मुख्यालय के एसी कमरो में रिर्मोट दबाकर कागजों पर नक्सली हमले का एक्शन प्लान बनाने वाले अफसरों की पोल धमतरी और राजनंदगांव की घटना के बाद एक एक कर खोल रही है। हालांकि धमत

डीजीपी पढ़ रहे कविताये नक्सली खेल रहे खून की होली

नक्सलियों ने पुलिस अधीक्षक समेत ३० जवानों की जान लेकर एक बार फिर राज्य में अपनी मजबूत स्थिति का एहसास करा दिया है। नक्सलियों ने पिछले साढ़े चार सालों में लगभग १३०० लोगों के जीवन से खूनी खेल खेला है। जसमें पुलिसकर्मीं, विशेष पुलिस अधिकारी और आम नागरिक शामिल हैं।करीब तीन दशक पहले शुरू हुआ नक्सलियों का तांडव अब नासूर बन गया है। जैसे-जैसे समय गुजरता गया नक्सली कमजोर होने की बजाय मजबूत होते गये हैं। प्रदेश सरकार मुखिया डॉ. रमन सिंह के नक्सलियों के विरुद्ध बेहद सख्त होने के बावजूद अब तक विशेष सफलता नहीं मिली है जिससे पुलिस प्रशासन की कार्यकुशलता पर प्रश्रचिन्ह लगने लगा है। कुछ अधिकारियों को छोड़ जिनके नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ी जा रही है उनमें इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। पुलिस मुखिया के कार्यकलापों पर नजर दौड़ाएं तो वे अपने साथ दो दर्जन से अधिक पुलिस कर्मचारियों की फौज के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों और साहित्यिक सम्मेलनों में ही नजर आते हैं। जबकि उन्हें नक्सलवाद के खिलाफ जंग लडऩे वाला मजबूत अधिकारी मानकर इस पद पर बिठाया गया था। यदि आंकड़ो पर गौर करें तो उनके पुलिस निदेशक बनने के बाद नक्स

नक्सल आपरेशन,हाईटेक होगे जवान.

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रायपुर नक्सल आपरेशन में लगे जवानों को हाइटेक करने की योजना केन्द्रीय गृह विभाग के नक्सल सेल ने बनाई है। जिसमें नक्सल इलाके में तैनात राज्य पुलिस के जवान भी शामिल रहेगें। इसके लिए बुलेट प्रूफ जैकेट और सेटेलाइट सेल फोन देने की तैयारी की जा रही है। नक्सल आपरेशन में लगे जवानों को हाइटेक करने की योजना पर अमल बस्तर संभाग में तैनात फोर्स से शुरु की जाएगी। ङाारखंड,उड़ीसा,महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित इलाकों में फोर्स को अत्यधिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। वहीं बस्तर संभाग में घने जंगलो और ऊंचे पहाडिय़ों के बीच विकराल समस्या से गुजरना पड़ता है। यहां सर्चिग के दौरान फोर्स का संर्पक तंत्र टूट जाता है। इसका भरपूर फायदा नक्सली उठाते है। अन्य राज्यों के मुकाबले नक्सली सबसे ज्यादा हमले बस्तर में करते है। नक्सलियों से मुठभेड़ के समय सही पोजीशन (छुपने का स्थान) नहीं मिल पाता है। इस कारण जवान गोलीबारी के शिकार हो जाते हंै। नक्सल आपरेशन विशेषज्ञों ने माना कि विस्फोट के साथ ही नक्सली चारो तरफ से गोलीबारी शुरु कर देते हैं। इस दौरान फोर्स को संभालने का मौका नहीं मिलता है। ऐसी घटनाओं को देखते हुए आपरेश

बारिश थमी तो नक्सली करेंगे अटेक

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प्रदेश में इस बार बारिश कम होने की संभावना है। इससे यह अनुमान है कि नक्सली हमलों में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। नक्सल आपरेशन से जुड़ेअधिकारियों का मानना है कि बरसात के तीन महीने नक्सली चुप बैठते हैं। इसके पीछे बस्तर के नदी नालो में उफान और जंगलो में पानी भर जाना है। यहां इस मौसम में मलेरिया और डायरिया जैसे संक्रामक बीमारी फैल जाती है। लेकिन इस बार बरसात नहीं होने पर नक्सलियों को हमला करने में आसानी होगी। पुलिस मुख्यालय में इसे लेकर एक गोपनीय बैठक भी हुई है। प्रदेश में इस बार मानसून विलंब से आने के कारण नक्सली गतिविधियां जून के पूरे महीने जारी रही। बीते वर्षो में बारिश के साथ ही नक्सली गतिविधियां मानसून आने के साथ ही थम जाती थी। बस्तर के अधिकांश इलाकों में पानी भर जाता है। इस बार बारिश कम होने पर नक्सली हमला तेज कर सकते हैं,उन्हें बारुदी सुरंग बिछाने और नदी नाले के पास कैंप करने में आसानी होगी। गुरुवार को पुलिस मुख्यालय में नक्सल आपरेशन से जुड़े अफसरों की बैठक आयोजित की गई थी। इसमें खासतौर से बस्तर आईजी टीजे लांगकुमेर उपस्थित थे। हालांकि मुख्यालय के अफसरो ने इसे रुटीन बैठक कहा है। सूत्रों क