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Showing posts from December, 2009

प्रदेश के नए इलाके भी अब नक्सलियों के चंगुल में

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छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग और सरगुजा संभाग के बाद अब नए जिले भी नक्सलियों के चंगुल में आ चुके है। रायपुर जिले का गरियाबंद , मैनपुर और धमतरी जिले का नगरी सिहावा इलाका पहले से ही प्रभावित है। वहीं बिलासपुर,कोरबा,रायगढ़ जैसे शांत प्रदेश भी अब नक्सली गतिविधियों से परचित हो रहे है। हालांकि बिलासपुर,कोरबा,रायगढ़ में नक्सलियों ने अब तक कोई हिंसात्मक घटना को अंजाम नहीं दिया है। लेकिन उनकी घुसपैठ से पुलिस भी इंकार नहीं करती है। सूत्रों के मुताबिक कोरबा के खदान वाले क्षेत्रों में आठ महीना पहले ही नक्सली हलचल से वहां दहशत फैल गया था। तत्कालीन एसपी रतन लाल डांगी ने स्वीकारा था कि नक्सली हलचल इस क्षेत्र में शुरुआती दौर में है। दूसरी ओर डीजीपी विश्वरंजन का कहना है कि नक्सली बस्तर और सरगुजा में दबाव बढऩे पर नए जिले में घुसपैठ कर रहे है। इसके पीछे फोर्स का ध्यान भटकाना है। पुलिस और खुफिया तंत्र ऐसी गतिविधियों पर पूरी तरह नजर रख रकी है। गरियाबंद में फोर्स भेजा जा चुका है। नए क्षेत्रों में जरुरत पडऩे पर फोर्स भेजा जाएगा। रायगढ़ जिले के कोपा में पकड़े गए नक्सली नेता संजय चक्रधारी से पूछताछ चल रही है। उसक

विशेष जन सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तारियों की तैयारी

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केन्द्रीय गृह विभाग द्वारा चलाए जाने वाले एंटी नक्सल आपरेशन में किसी भी प्रकार की बाधा को रोकने के लिए नक्सली समर्थकों पर राज्य विशेष जनसुरक्षा कानून का सहारा लिया जा सकता है। प्रदेश में नक्सली समर्थकों का विरोध शुरू हो गया है, जिसे देखते हुए पुलिस बड़ी कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। बस्तर में नक्सलियों द्वारा जनप्रतिनिधियों को निशाने पर लेने के साथ ही नक्सली समर्थकों के खिलाफ भी बगावत शुरू हो गई थी। ग्रामीण इलाकों और शहरों में रह रहे नक्सली समर्थकों के खिलाफ वातावरण तैयार होने लगा है। लगातार एकतरफा रिपोर्ट से बस्तरवासियों में एनजीओ से जुड़े लोगों के खिलाफ जनाक्रोश फैल रहा है। इनके द्वारा सिर्फ सरकारी शोषण का ही विरोध की जा रही है। सोमवार को दूसरे राज्यों से नक्सल प्रभावित इलाके में सर्वे करने आए संगठनों के खिलाफ राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संयोजक डा.सलीम राज और होटल कर्मचारी संघ के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी करते हुए विरोध किया था। वहीं वनवासी चेतना आश्रम द्वारा निकाली जा रही पदयात्रा का स्थानीय आदिवासियों ने जमकर विरोध किया है। नक्सली समर्थकों के खिलाफ खड़े हो रहे लोगों के आक्रोश से मा

सलवा जूड़ूम के बाद नक्सली हिंसमें बढ़ोत्तरी हुई

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वनवासी चेतना आश्रम के संस्थापक ने अपने ऊपर नक्सली समर्थक होने के लग रहे आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वे बस्तर में शांति चाहते है, लेकिन पुलिस बल ,सलवा जुड़ूम,और नक्सली वहां हिंसा चाहते है। इसलिए शांतिवार्ता के लिए चलाए जा रहे पदयात्रा का विरोध किया जा रहा है। वनवासी चेतना आश्रम के हिमांशु कुमार, पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र सायल ,जनआंदोलन के राष्ट्रीय समंव्यक डॉ संदीप पांडे ने एक संयुक्त पत्रकारवार्ता में कहा कि बस्तर में जब से सलवा जूड़ूम आंदोलन शुरु हुआ है नक्सली हिंसा में तेजी आई है। जिसमें आम नागरिक ,पुलिस और नक्सली हजारों की संख्या में मारे गए है। उन्होंने कहा कि बस्तर में आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने और माइनिंग उद्योगों को वहां स्थापित करने के लिए सरकार वहां फोर्स तैनात कर रही है। इससे औद्योगिक घरानों और राज्य के कुछ खास लोगों को जरुर लाभ होगा, लेकिन आदिवासी को इससे कोई लाभ नहीं होगा। हम सभी प्रकार की हिंसा के खिलाफ है। हिमांशु कुमार ने कहा कि उनके खिलाफ अगर कोई अपराधिक मामले हैं तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार क्यों नहीं करती है। उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स

नौ साल में एक हजार सिर कलम

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रायपुर। राज्य निर्माण के बाद से अब तक नक्सलियों और पुलिस के बीच चल रहे संघर्ष में नक्सलियों ने एक हजार ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया है। इनमें अधिकांश का सिर कलम कर दिया गया। इन पर नक्सलियों ने पुलिस के लिए मुखबिरी करने का आरोप लगाया था। दूसरी ओर पुलिस ने नक्सलियों द्वारा मारे गए ग्रामीणों को अपना मुखबीर मानने से हर बार इंकार किया है। राज्य निर्माण के बाद से अब तक नक्सली एक हजार एक सौ बत्तीस ग्रामीणों को कूरतापूर्वक गला रेतकर मौत के घाट उतार चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि नक्सली बात नहीं मानने पर मारपीट करते हैं। पुलिस की मुखबीरी करने और किसी भी नक्सली घटना में पुलिस द्वारा गवाह बनाए जाने पर भी वे ग्रामीणों की भीड़ एकत्र कर खुलेआम अमानवीय सजा देते हैं। बस्तर संभाग सहित राजनांदगांव में भी ऐसी अमानवीय मुहिम जारी है। यही कारण है कि अब नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों में दहशत व नफरत बढ़ती जा रही है, लेकिन जहां नक्सली उनके साथ अमानवीय सलूक करते हैं, वहीं सरकार और पुलिस का रवैया भी किसी तरह कम नहीं आंका जा सकता। लगातार संख्या बढ़ी राज्य बनने के बाद नक्सली हिंसा में मरने वाले ग्रामीणों की संख्