भिलाई की घटना के लिए प्रशासन और मीडिया जिम्मेदार

दुर्ग जिला प्रशासन,पुलिस, लोकल मिडिया इस मानवता को शर्मिंदा करने वाली घटना का जिम्मेदार है ..इससे मिलती जुलती घटना २००८ की है ,,,रायपुर तेलीबांधा में एक साहू परिवार भू माफिया के साजिश का शिकार हो गया ,,किसी रिश्तेदार द्वार जमींन मकान बेच देने पर सड़क पर आ गया था.उसने परिवार ने भी बंद कमरे में गैस सिलेंडर खोलकर अपनी जवान चार बहनों और माँ बाप के साथ आत्महत्या करने की धमकी दी थी,,,मै उस समय हरि भूमि का पत्रकार था ,मेरे साथ नई दुनिया का पत्रकार अनुज सक्सेना भी था ,,,,हम दोनों पुलिस से पहेले पहुच गए थे ,,,भू माफिया के गुंडे उस वक्त वहा मौजद थे ,,,हमारी मौजूदगी में तेलीबांध का थानेदार भी पहुच गया उसने भू माफिया की और से दलाली शुरू कर दी ,,,,,हमने मौके को भाप लिया मैंने ततकाल इसकी जानकारी एसएसपी बी एस मरावी ओउर सीएसपी शशि मोहन को दी इसके साथ ही शिव सेना सहित आधा दर्जन इसे सामाजिक सगठनों को दी ,,जो तत्काल घट्न स्थल में पहुचे और परिवार आपनी हकीकत बताने में कामयाब रहा ,,,भू माफिया के गुंडों पर सीएसपी शशि मोहन ने पहुचते डंडे बरसने शुरू कर दिए वाही थानेदार भी बदला हुआ नजर आया जिसने गुंडों को अचानक मरना शुरू कर दिया.हलाकि इस बीच मुझे भी प्रेस के एक सीनयर का फोन आना शुरू हो गया था ,,,जिसने कहा क्यों तमाशा करवा रहे हो ,,,,,जमीन भैय्या की है ,,एसएसपी बी एस मरावी सीएसपी शशी मोहन सिंग और रायपुर की मिडिया की वजह से साहू परिवार आत्महत्या करने से बच गया ,,,यहाँ की मीडिया ने साहू परिवार के दर्द को प्रमुखता से प्रकशित किया ,,,,,,,,यह बाते मायने किसी को महिमा मंडित करने और अपनी वह वाही करने के लिए नहीं लिख है ,,बल्कि प्रशासन और मीडिया की जिम्मेदारी क्या होती है यह बताई है ,,,खैर जो घटना हो गई उसके लिए अफ़सोस तो है ,,लेकिन भविष्य में प्रशासन और मीडिया इस तरह की घटना होने से रोके समाज में हमारी यही जिम्मेदारी है ,,,छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी भिलाई में दिल दहला देने वाली घटना हुई।
पिता की मृत्यु के बाद भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) में अनुकंपा नियुक्ति की बाट जोह रहे परिवार को जब निराशा हाथ लगी तो बेरोजगार युवक की मां व तीन बहनों ने जहर सेवन कर आत्महत्या कर ली। यह घटना अचानक भी नहीं हुई, मौत से पहले पांच दिनों तक यह परिवार अपने आपको घर में बंधक बनाकर लगातार आत्महत्या कर लेने की धमकी दे रहे थे। बीएसपी प्रबंधन ने परिजनों से मिलकर नौकरी देने का आश्वासन भी दिया था लेकिन अधिकारी प्रबंधन का चक्कर लगाकर परेशान हो चुके परिवार को भरोसा दिलाने में नाकाम रहा तभी तो उन्होंने आत्महत्या करने जैसा कड़ा कदम उठाया!
दरअसल, कहानी की शुरूआत 3 दिसंबर 1994 से शुरू होती है जिस दिन सुनील गुप्ता के पिता की लाश रेलवे पटरी पर मिली थी। स्व. एमएल गुप्ता बीएसपी में कार्यरत थे। परिजन उनकी मौत को हत्या करार देते रहे जबकि भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन इसे आत्महत्या मानता आया। उस वक्त सुनील की उम्र 20 वर्ष थी, जब वे नौकरी के योग्य हुए तब से वे लगातार प्रबंधन से नौकरी की गुहार लगाते रहे। नाकाम होने पर उन्होंने इहलीला समाप्त करने का कठोर निर्णय लिया। पिता के मौत से शुरू हुई कहानी का अध्याय परिवार के शेष चार सदस्यों की मौत से समाप्त हो गया। अब केवल सुनील गुप्ता बच गया है। इस घटना से पूरा नगर स्तब्ध है। कई सवाल उठ रहे हैं, लेकिन जवाब नहीं मिलने के कारण लोगों में बीएसपी प्रबंधन व प्रशासन के खिलाफ आक्रोश है। जब पांच दिनों से अपने आपको बंधक बनाकर हाथ में सल्फॉस जैसे खतरनाक जहर की गोलियां रख आत्महत्या कर लेने की धमकी दे रहे थे तब जिला प्रशासन ने उन्हें अकेले छोड़ा क्यों? ऐसी बात नहीं है कि जनप्रतिनिधियों व प्रशासन के लोगों ने परिवार को समझाने की कोशिश नहीं की, लेकिन इतना बड़ा कदम उठाने के पीछे क्या कारण रहे, यह भी जांच का विषय है?
घटना के पीछे की मनोवृत्ति को भी समझने की जरूरत है। एक तो यह कि आज देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। एक-तरफ नामी संस्थानों से पढ़कर निकलने वाले युवक-युवतियों को लाखाें रुपए का पैकेज मिल रहा है लेकिन मध्यम-लघु उद्योग -व्यापार करने वाले संस्थानों में वेतन आकर्षक नहीं है और काम बहुत है। यही वजह है कि उदारीकरण के बीस साल बाद भी युवाओं में सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षण बरकरार है। शायद सरकारी नौकरियां अधिक सुरक्षा व सुविधाएं देती हैं। यह बात समझने की है कि ऐसा वातावरण तैयार करने की जरूरत है जिसमें हर युवा अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत रहे। यह नहीं हो पा रहा है। यहां तक कि इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद भी मन मुताबिक रोजगार नहीं मिल पा रहा है। लेकिन देश में काम की कोई कमी है, ऐसी बात भी नहीं है। स्वरोजगार के जरिए लोग ठेला-खोमचा लगाकर परिवार चला लेते हैं फिर पढ़े-लिखे युवा अगर अपना खुद का व्यापार करे तो इसमें बुराई क्या है।
भिलाई में अनुकंपा नौकरी नहीं मिलने के कारण परिजनों द्वारा आत्महत्या कर लेने की घटना सावधान करने वाली है। प्रत्येक संस्थान में नौकरी व अनुकंपा नौकरी देने की अपनी व्यवस्था होती है। लेकिन मानवीय दृष्टिकोण से सभी प्रकरणों पर नियम का हवाला देकर एक समान बर्ताव भी नहीं किया जाना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना जनकल्याणकारी भावना के अनुरूप की गई थी। देश के युवाओं को रोजगार देना एक प्रमुख लक्ष्य था। यह भी गौर करने लायक है कि नियम से परे जाकर किसी एक को अनुकंपा नौकरी दे दी गई तो इससे प्रबंधन के लिए परेशानी हो सकती है। ऐसा लगता है कि सुनील गुप्ता के साथ प्रबंधन का रवैया अनुकंपा नौकरी देने को लेकर जो भी रहा हो लेकिन एक मानवीयता का अभाव जरूर था। इस बेरोजगार युवक को उनके पिता के सहयोगियों द्वारा सही सलाह दी जाती तो शायद वह किसी अन्य रोजगार-स्वरोजगार की ओर ध्यान देता। ऐसी घटनाएं किसी उपक्रम को लेकर समस्या नहीं है बल्कि समाज की कमजोरियों को भी उजागर करती है। सुनील गुप्ता का परिवार आर्थिक तंगी के दौर से नहीं गुजर रहा था, ऐसी जानकारी मिली है। नौकरी को लेकर परेशानी थी लेकिन किसी परेशानी का समाधान जान देकर तो की नहीं जा सकती। बहुत से ऐसे परिवार भी हैं जो बेहद प्रतिकूल परिस्थिति में जीते है, संघर्ष करते हैं और सफल भी होते हैं।
अब अगला अध्याय शुरू हो चुका है। कई ट्रेड अप्रेंटिस का प्रशिक्षण लिए युवक जिन्हें भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी नहीं मिली है वे टंकी के ऊपर चढ़कर प्रबंधन पर नौकरी का दबाव बना रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के दौरे शुरू हो गए। बीएसपी प्रबंधन पर इसकी जवाबदारी तय की जा रही है। कुछ दिनो में यह प्रकरण भी अन्य प्रकरणों की तरह शांत हो जाएगा। होता यही है, मुद्दा कुछ समय तक ही चर्चा में रहता है। ऐसा होना नहीं चाहिए। देश में युवा को सही मार्गदर्शन की जरूरत है। इस बात पर चिंतन हो कि किसी परिवार का इस तरह मौत को गले लगाने की जरूरत नहीं पड़े।
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प्रशासन और मीडिया इस तरह की घटना होने से रोके समाज में हमारी यही जिम्मेदारी है ,,,छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी भिलाई में दिल दहला देने वाली घटना हुई।