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Showing posts from January, 2010

नक्सली आतंक से गरियाबंद, मैनपुर बंद

जिले के देवभोग से लेकर गरियाबंद तक के इलाके में नक्सलियों ने अपना झंडा लहराते हुए 28 दिसंबर को बंद का ऐलान किया था। इसका असर इलाके के छोटे मोटे बाजारों में स्पष्ट दिखा। मुख्यालय से भेजे गए फोर्स की मौजूदगी का स्थानीय व्यापारियों में जरा भी असर नहीं दिखा, बल्कि नक्सली दहशत में स्वस्फूर्त बंद रहा। नक्सलियों के फरमान को देखते हुए राजधानी से छूटने वाली गरियाबंद, देवभोग जाने वाली बसों के पहिए जहां थम गए थे, वहीं इस सड़क में पूरी तरह वीरानी छाई रही। डीजीपी विश्वरंजन ने गरियाबंद, मैनपुर इलाके में फोर्स भेजे जाने का जहां हवाला दिया था, वहीं नक्सलियों के पर्चे और पोस्टर मैनपुर में उनके दुस्साहस की गाथा कहने से बाज नहीं आ रही थी। मैनपुर में नक्सलियों ने अपनी ताकत दिखाई है। भूतेश्वरनाथ मंदिर गरियाबंद से लगे एक दर्जन गांव वर्दीधारी नक्सलियों के चंगुल में हैं। कुछ गांवों में नक्सलियों की आमद को देखते हुए दहशतभरी चुप्पी छाई हुई है। सूत्रों के मुताबिक जूनाडीह, खुर्सीपार, काजनसरा, बेन्कुरा जैसे गांवों के आसपास जंगलों में नक्सलियों की हथियार बंद टुकड़ियों की झलक ग्रामीणों तक पहुंच रही है। नक्सली जहां भय

विकास और आपरेशन एक साथ : विश्वरंजन

डीजीपी विश्वरंजन ने कहा कि इस वर्ष नक्सल प्रभावित राज्यों के मुकाबले छत्तीसगढ़ में कम नक्सली वारदात हुई हैं। यह आंकड़े केन्द्रीय गृह विभाग के हैं। बस्तर संभाग में अब आपरेशन और विकास एक साथ चलेगा। एक इलाके को सुरक्षा घेरे में लेकर पूरी तरह विकास किया जाएगा। यह आपरेशन उस समय तक चलेगा जब तक बस्तर पूरी तरह विकासित न हो जाए। हम ऐसी कोई समस्या वहां रहने नहीं देंगे जिससे नक्सलवाद और ऐसी कोई आतंकवादी संगठन वहां पनपने लगे। डीजीपी विश्वरंजन ने पुलिस मुख्यालय में नववर्ष मिलन समारोह में संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग और राजनांदगांव में एक साथ आपरेशन शुरू होने वाला है। आपरेशन ग्रीन हंट के तहत नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंपों में हमला बोला जाएगा और अर्धसैनिक बलों की कंपनी तैनात कर उस इलाके में विकास कार्य शुरू कराए जाएंगे। यह काम तब तक चलेगा जब तक वह इलाका पूरी तरह विकसित नहीं हो जाता। उसके बाद नए इलाके में विकास कार्य शुरू करेंगे। इस कार्य के लिए केन्द्र से फोर्स मिल चुकी है। आगे और भी फोर्स मांगी गई है। इससे हम अपने आपरेशन को अधिक से अधिक नक्सल प्रभावित इलाके में चला पा

शहरी नक्सलियों को नहीं घेर पाई पुलिस

राज्य में नक्सली समर्थकों को घेरने के लिए 2005 में राज्य विशेष जनसुरक्षा अधिनियम बनाया गया था। पुलिस इस कानून के तहत चंद समर्थकों को ही आरोपी बना पाई है। इस कानून के तहत नक्सली समर्थकों को घेर पाने में पुलिस 2009 में पूरी तरह असफल रही है। राज्य पुलिस के सालाना रिपोर्ट के अनुसार राज्य विशेष जनसुरक्षा कानून के तहत सिर्फ सात प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इसमें रायपुर, महासमुंद, धमतरी, कबीरधाम, बिलासपुर, रायगढ़, जांजगीर, कोरबा, सरगुजा, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर, सुरजपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर में एक भी प्रकरण दर्ज नहीं कर पाई है। वहीं दुर्ग में राज्य विशेष जन सुरक्षा कानून के तहत एक प्रकरण दर्ज किया गया है। राजनांदगांव में पांच प्रकरण दर्ज हुए हैं। कांकेर में एक प्रकरण दर्ज हो पाया है। सूत्रों के मुताबिक पुलिस सही ढंग से शहरी और ग्रामीण नक्सली नेटवर्क को घेरने का प्रयास करती तो धमतरी, रायपुर, दुर्ग भिलाई, महासमुंद व कबीरधाम में लगभग आधा दर्जन से अधिक प्रकरण दर्ज कर सकती थी। सूत्रों के मुताबिक खुफिया विभाग ने लगभग एक दर्जन ऐसे व्यक्तियों के विषय में जानकारी एकत्र की थी। इन्हें इस कानून

सलवा जुड़ुम कार्यकर्ताओं ने किया हमला

रायपुर। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख व प्रसिद्ध गांधीवादी नेता मेघा पाटकर ने कहा कि दंतेवाड़ा और पूरे बस्तर की स्थिति गंभीर है। सरकार और सलवा जूड़ूम कार्यकार्ताओं के इशारे पर गांधीवादी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमला कर उन्हें वापस जाने के लिए बाध्य किया गया। मेघा पाटकर ने फोन पर हरिभूमि को बताया कि उनकी मांग है कि वनवासी चेतना आश्रम के संस्थापक हिमांशु कुमार और उसके कार्यकर्ताओं को यहां काम करने की छूट मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वनवासी चेतना आश्रम के कार्यकर्ता कोपा कुंजाम से मिलने वह जेल गई थीं। जहां जेल के अधिकारियों ने कहा कि वह उन लोगों से नहीं मिलना चाहता है, लेकिन मुलाकात करने के लिए अड़े रहने पर उन्होंने बाद में एक पत्र दिखाया जिसे कोपा कुंजाम ने लिखा गया बताया गया है। जिसमें उसने नहीं मिलने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा कि यह पत्र कोपा कुंजाम का नहीं था। वह पत्र कोपा कुंंजाम ने लिखा भी है तो वह पूरी तरह पुलिस के दबाव में है। मेघा पाटकर ने कहा कि उनके साथ और भी मानवाधिकार कार्यकर्ता है। इनके साथ वह बस्तर की हालत जानने आई हैं। उन्होंने कहा हम बस्तर के खनिज, वनसंपत्ति का दोहन करन