शहरी नक्सलियों को नहीं घेर पाई पुलिस

राज्य में नक्सली समर्थकों को घेरने के लिए 2005 में राज्य विशेष जनसुरक्षा अधिनियम बनाया गया था। पुलिस इस कानून के तहत चंद समर्थकों को ही आरोपी बना पाई है। इस कानून के तहत नक्सली समर्थकों को घेर पाने में पुलिस 2009 में पूरी तरह असफल रही है। राज्य पुलिस के सालाना रिपोर्ट के अनुसार राज्य विशेष जनसुरक्षा कानून के तहत सिर्फ सात प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इसमें रायपुर, महासमुंद, धमतरी, कबीरधाम, बिलासपुर, रायगढ़, जांजगीर, कोरबा, सरगुजा, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर, सुरजपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर में एक भी प्रकरण दर्ज नहीं कर पाई है। वहीं दुर्ग में राज्य विशेष जन सुरक्षा कानून के तहत एक प्रकरण दर्ज किया गया है। राजनांदगांव में पांच प्रकरण दर्ज हुए हैं। कांकेर में एक प्रकरण दर्ज हो पाया है। सूत्रों के मुताबिक पुलिस सही ढंग से शहरी और ग्रामीण नक्सली नेटवर्क को घेरने का प्रयास करती तो धमतरी, रायपुर, दुर्ग भिलाई, महासमुंद व कबीरधाम में लगभग आधा दर्जन से अधिक प्रकरण दर्ज कर सकती थी। सूत्रों के मुताबिक खुफिया विभाग ने लगभग एक दर्जन ऐसे व्यक्तियों के विषय में जानकारी एकत्र की थी। इन्हें इस कानून के तहत पुलिस घेर सकती थी। 2008 में राज्य विशेष जन सुरक्षा कानून के तहत शहरी नक्सली नेटवर्क से जुड़े आरोपियों को रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग भिलाई में गिरफ्तार किया गया था। दुर्ग में एक प्रकरण में पुलिस के चालान पेश नहीं कर पाने के कारण जहां गिरफ्तार आरोपी अजय टीजे को जमानत मिल गई, वहीं विवेचना फाइल भी बंद करनी पड़ी थी। धमतरी और राजनादगांव जिले में हुए नक्सली हमले के बाद नक्सलियों के साथ मिले स्थानीय ग्रामीणों को पुलिस इस कानून के तहत गिरफ्तार नहीं कर सकी। नक्सल प्रभावित बस्तर और सरगुजा रेंज में भी पुलिस इस कानून के तहत नक्सली समर्थकों को घेर पाने में नाकाम रही, वहीं 2007 और 2008 की गिरफ्तारी में पुलिस द्वारा की गई विवेचना पर न्यायलीन कार्रवाई में गवाही और साक्ष्यों के परीक्षण के दौरान उंगलियां उठनी शुरू हो गई है।

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