विकास और आपरेशन एक साथ : विश्वरंजन

डीजीपी विश्वरंजन ने कहा कि इस वर्ष नक्सल प्रभावित राज्यों के मुकाबले छत्तीसगढ़ में कम नक्सली वारदात हुई हैं। यह आंकड़े केन्द्रीय गृह विभाग के हैं। बस्तर संभाग में अब आपरेशन और विकास एक साथ चलेगा। एक इलाके को सुरक्षा घेरे में लेकर पूरी तरह विकास किया जाएगा। यह आपरेशन उस समय तक चलेगा जब तक बस्तर पूरी तरह विकासित न हो जाए। हम ऐसी कोई समस्या वहां रहने नहीं देंगे जिससे नक्सलवाद और ऐसी कोई आतंकवादी संगठन वहां पनपने लगे। डीजीपी विश्वरंजन ने पुलिस मुख्यालय में नववर्ष मिलन समारोह में संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग और राजनांदगांव में एक साथ आपरेशन शुरू होने वाला है। आपरेशन ग्रीन हंट के तहत नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंपों में हमला बोला जाएगा और अर्धसैनिक बलों की कंपनी तैनात कर उस इलाके में विकास कार्य शुरू कराए जाएंगे। यह काम तब तक चलेगा जब तक वह इलाका पूरी तरह विकसित नहीं हो जाता। उसके बाद नए इलाके में विकास कार्य शुरू करेंगे। इस कार्य के लिए केन्द्र से फोर्स मिल चुकी है। आगे और भी फोर्स मांगी गई है। इससे हम अपने आपरेशन को अधिक से अधिक नक्सल प्रभावित इलाके में चला पाएंगे। उन्होंने कहा कि नक्सल प्रभावित इलाके में जाने से कोई अफसर नहीं कतराता। पहले भले ही हिचकता हो, लेकिन वहां जाने के बाद वह अपना काम शुरू कर देता है। थाने में तत्काल एफआईआर लिखे जाने के मामले में उन्होंने कहा कि सीआरपीसी में यह व्यवस्था पहले से ही है। उनके डीजी कार्यालय में भी एफआईआर लिखी जाती है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ पूरी तरह नक्सली समस्या से मुक्त होने की लड़ाई में आगे है। छत्तीसगढ़ के मुकाबले दूसरे नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सली घटना में बढ़ोत्तरी हुई है। यह केन्द्रीय गृह विभाग की रपट है। उन्होंने कहा कि आपरेशन ग्रीन हंट और ज्वाइंट आपरेशन का विरोध करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। आपरेशन को प्रभावित इलाकों में नागरिकों का समर्थन मिल रहा है। शहर में हैं नक्सलियों के ब्रेन डीजीपी विश्वरंजन ने कहा कि शुरू से ही शहरों में नक्सलियों का नेटवर्क काम कर रहा है। नक्सली शहर में नहीं बल्कि नक्सलवाद चलाने वाला ब्रेन शहर में रहता है। 2008 में पुलिस ने उसे ध्वस्त किया है। इस बिरादरी के लोग अब भी सक्रिय हैं, जिस पर पुलिस की पूरी नजर है। पश्चिम बंगाल में भी नक्सलियों का शहरी नेटवर्क कोलकाता में बैठता था। वह शहर में कभी अटैक नहीं करते। भर्ती न होने से बढ़ा नक्सलवाद 1990 से छत्तीसगढ़ में पुलिस भर्ती नहीं हुई थी, लिहाजा फोर्स धीरे धीरे कमजोर होता चला गया। पन्द्रह साल तक नई भर्ती नहीं होने के कारण नक्सली और अपराधी हावी होते चले गए। अब नई भर्ती से राज्य पुलिस को मजबूती मिली है। पहली पारी के भर्ती को नक्सल प्रभावित जिलों में भेजा गया है। अब नई भर्ती को मैदानी क्षेत्र में तैनात किया जाएगा। पुलिस में एक साथ भर्ती नहीं की जा सकती। जवानों को ट्रेनिंग के बाद ही मैदान में उतारा जाता है।

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