छत्तीसगढ़ पुलिस की तबादला नीति पर उठी अंगुली

चुनाव के मद्देेनजर साल में दो बार राज्य पुलिस में हुए तबादलों पर भी ऊंगली उठनी शुरु हो गईं है। इन तबादलों में निरीक्षक, उपनिरीक्षक साहित सिपाही स्तर के कर्मचारियों को एक नक्सल प्रभावित जिले से दूसरे नक्सल प्रभावित जिले में भेज दिया गया था। जबकि मैदानी जिले में अर्से से पदस्थ अधिकारी,कर्मचारी सुरक्षित जिलों में ही भेजे गए थे। कृपापात्र कर्मचारी अधिकारी दस वर्ष की नौकरी के बावजूद अब तक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं भेजे गए हैं। जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात पुलिस जवान मायूस हैं। उनका मनोबल लगतार गिर रहा है। जो पुलिस की तबादला नीति को कटघरे में खड़ा करता है। गौरतलब है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आचार संहिता लगने से पहले थोक में इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, हवलदार, सिपाही आदि के तबादले किए गए थे। जानकारी के मुताबिक इन तबादलों में नक्सल प्रभावित इलाके के अधिकारी कर्मचारियों को गैर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं भेजा गया, बल्कि नेताओं द्वारा पसंद के पुलिस अधिकारियों को अपने क्षेत्रों में पदस्थ कराया गया। लोकसभा चुनाव के समय भी आचार संहिता लगने से पहले हुए तबादलों में भी यह खेल जारी रहा। इसमें स्पष्ट नजर आता है कि मैदानी इलाके में पदस्थ पुलिस अधिकारी दूसरे मैदानी जिलों में स्थांतरित किए गए। इस दौरान सूची में भी गड़बड़ी की बात भी सामने आई जब नक्सल प्रभावित जिले से वापस बुलाकर मैदानी जिले में भेजे गए अधिकारी फिर से नक्सली जिले में स्थांतरित कर दिये गये। इनमे से अधिकांश ने प्रशासन शाखा में गुजरिश आवेदन लगाया और कुछ ने कोर्ट जाकर स्टे लाने का जुगाड़ किया। बहारहाल इस भेदभाव पूर्ण नीति के शिकार होने वालों की संख्या ज्यादा है। हाल ही में पूर्व गृह मंत्री नंद कुमार पटेल ने आरोप लगाया है कि पुलिस महकमें में दरबारी पुलिस मैदानी क्षेत्रों में वर्षो से जमे हुए है। हालांकि अविभाजित छत्तीसगढ़ में भी वह गृह मंत्री रहते हुए छत्तीसगढ़ के कई अधिकारियों को नक्सल प्रभावित बस्तर और सरगुजा संभाग में नहीं भेज पाए थे।
मैदानी जिले
रायपुर से दुर्ग,बिलासपुर से कोरबा,रायगढ़ से महासमुंद,धमतरी से रायपुर,जांजगीर चांपा से कर्वधा।
नक्सल प्राभावित जिले
सूरजपुर,नारायणपुर से बलरामपुर,जगदलपुर से कांकेर, सरगुजा से बीजापुर दंतेवाड़ा से बस्तर राजनंदगांव से कांकेर आईबी की नजर नक्सल प्रभावित इलाकों में सजा बतौर भेजे जाने वाले अधिकारियों की बदली मानसिकता पर अब केन्द्रीय खुफिया तंत्र ने भी नजर रखना शुरु कर दिया है। इनमें वे अधिकारी शामिल हैं जिन्होंने नौकरी छोडने यह कोर्ट से स्टे लाने का प्रयास शुरु कर दिया है। अब यह भी माना जा रहा है कि हताश हो चुके अधिकारी कर्मचारी की फौज नक्सल प्रभावित जिलों में तैनात कर नक्सल समस्या को बढ़ाया जा रहा है। इसके शिकार सीआरपीएफ के अधिकारी और जवान भी हो रहे है।

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