डीजीपी पढ़ रहे कविताये नक्सली खेल रहे खून की होली
नक्सलियों ने पुलिस अधीक्षक समेत ३० जवानों की जान लेकर एक बार फिर राज्य में अपनी मजबूत स्थिति का एहसास करा दिया है। नक्सलियों ने पिछले साढ़े चार सालों में लगभग १३०० लोगों के जीवन से खूनी खेल खेला है। जसमें पुलिसकर्मीं, विशेष पुलिस अधिकारी और आम नागरिक शामिल हैं।करीब तीन दशक पहले शुरू हुआ नक्सलियों का तांडव अब नासूर बन गया है। जैसे-जैसे समय गुजरता गया नक्सली कमजोर होने की बजाय मजबूत होते गये हैं। प्रदेश सरकार मुखिया डॉ. रमन सिंह के नक्सलियों के विरुद्ध बेहद सख्त होने के बावजूद अब तक विशेष सफलता नहीं मिली है जिससे पुलिस प्रशासन की कार्यकुशलता पर प्रश्रचिन्ह लगने लगा है। कुछ अधिकारियों को छोड़ जिनके नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ी जा रही है उनमें इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। पुलिस मुखिया के कार्यकलापों पर नजर दौड़ाएं तो वे अपने साथ दो दर्जन से अधिक पुलिस कर्मचारियों की फौज के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों और साहित्यिक सम्मेलनों में ही नजर आते हैं। जबकि उन्हें नक्सलवाद के खिलाफ जंग लडऩे वाला मजबूत अधिकारी मानकर इस पद पर बिठाया गया था। यदि आंकड़ो पर गौर करें तो उनके पुलिस निदेशक बनने के बाद नक्सली हमलों में तेजी आई है। विगत साढ़े चार वर्षो में नक्सली लड़ाई की भेंट चढ़ी लगभग १३०० जानों में से ज्यादतर विगत दो वर्षाे में गई हैं। कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम भी डीजीपी के विरुद्ध जा रहे हैं। इनमें से एक विधानसभा चुनाव के समय तत्कालीन मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी आलोक शुक्ला के साथ दंतेवाड़ा जिले में चुनाव सम्पन्न कराने के संबंध में हुई चर्चा में डीजीपी विश्वरंजन का जबाव भी है। जिसमें उन्होंने पहाडिय़ों पर तीन सौ नक्सलियों की मौजूदगी की बात तो स्वीकारी थी लेकिन उनके विरुद्ध कोई अभियान नहीं चलाया था। पुलिस महानिदेशक की कार्यप्रणाली से स्वयं गृहमंत्री भी असंतुष्ट हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मौजूदा पुलिस नेतृत्व में नक्सलियों के विरुद्ध प्रभावी लड़ाई लड़े जाने में आशंका जताई है। बस्तर सांसद बलीराम कश्यप ने तो डीजीपी को असफल करार कर दिया है। उन्होंने राजनांदगांव की घटना के बाद असंतोष जाहिर किया है। विधानसभा में विपक्ष के नेता रविं्र चौबे भी सार्वजनिक रूप से पुलिस महानिदेशक की योग्यता पर प्रश्र चिन्ह लगाते हुए कानून व्यवस्था की चिंता करने की बजाय उनके अन्य कार्यों में व्यस्त रहने पर रोष प्रकट कर चुके हैं। चार वर्षों में गई तेरह सौ जानेंवर्ष २००५ से लेकर अब तक १३०० से अधिक जाने गई हैं। इनमें ३६० पुलिसकर्मी, १४३ विशेष पुलिस अधिकारी व ७९३ आम नागरिक शामिल हैं। इस दौरान पुलिस ने २८१ नक्सलियों को मार गिराया व ६३७ को गिरफ्तार किया है। नक्सलियों ने इसी वर्ष के मात्र छह माह में सौ से ज्यादा पुलिसकर्मियों और विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की जान ली है। अब तक विभिन्न नक्सली घटनाओं में ८६ पुलिसकमियों और १५ एसपीओ जान गई है। १० अप्रैल को दंतेवाड़ा जिले में सीआरपीएफ के गश्ती दल पर नक्सली हमला ,दस पुलिस कर्मी शहीद ,सात अन्य घायल। लोकसभा मतदान के दौरान राजनांदगांव जिले में बारूदी सुरंग में विस्फोट कर मतदान दल के पांच अधिकारियों की हत्या, व केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के दो जवानों को गोली मार दी। छह मई को दंतेवाड़ा जिले में हमला किया और बारूदी सुरंग में विस्फोट कर ट्रेक्टर को उड़ाया, दो सीआरपीएफ के जवान और पांच एसपीओ समेत ११ लोग शहीद, धमतरी जिले में ११ मई को पुलिस वाहन को उड़ाया, १२ पुलिसकर्मी शहीद, सात अन्य घायल, २० जून को दंतेवाड़ा जिले में बारूदी सुरंग में विस्फोट कर ट्रक को उड़ाया, सीआरपीएफ के ११ जवान शहीद, ११ अन्य घायल। इन आंकड़ों में मारे गए गोपनीय सैनिक या सरकारी कर्मचारी शामिल नहीं है।
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